बौद्ध व जैन समुदाय के बीच शेखपुरा का काफी महत्व रहा है। हाल ही में इसकी पहचान हिंदु धार्मिक स्थल के रूप में भी हुई है। 14 अप्रैल 1983 को शेखपुरा प्रखंड से अनुमंडल तथा 31 जुलाई 1994 को जिला बना। पहले शेखपुरा शहर 'शेखपुर' नाम से जाना जाता था।
हिंदुत्व के अलावा इस क्षेत्र का बौद्धकालीन महत्व भी है। शेखपुरा का बुधौली मुहल्ला स्थित पर्वत भगवान बुद्ध की स्मृति से जुड़ा हुआ है। भगवान बुद्ध ने इस स्थान पर उपदेश दिए थे। इसी कारण इस स्थान का नाम बुधौली पड़ गया। यह स्थान हमेशा से महान संतों की पावन भूमि रहा है। यह सूफी संत हजरत शोएब रहमतुल्लाह अलैह की कर्मभूमि रही है। यहां का फरीदपुर गांव प्रसिद्ध है। यहां शेरशाह ने युवावस्था में शेर का शिकार करने के बाद शेर खां की उपाधि पाई थी।
राजधानी पटना के निकट, दक्षिण बिहार के मुंगेर कमिश्नरी का शेखपुरा जिला के उत्तर-पश्चिम में नालंदा, दक्षिण में नवादा व जमुई और पूरब में लखीमपुर जिला स्थित है।
'धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे-युगे' का अमिय उदघोष हमारी संस्कृति के अन्यतम ग्रंथ गीता में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने किया है। प्रत्येक युग में धारा पर भगवान प्रत्यक्षत: तो अवतरित नहीं होते किसी न किसी रूप में यह हमें अपने अस्तित्व का आभास करा ही देते हैं।
शेखपुरा जिला में बरबीघा प्रखंड के सामस ग्राम में श्री विष्णुधाम मंदिर में अवस्थित मूर्ति हमारी इसी सांस्कृतिक चेतना का मूर्त रूप है। चाहे हम इसे धार्मिक दृष्टि से देखें या सांस्कृतिक या फिर ऐतिहासिक दृष्टि से, इसका सार्वभौमिक महत्व स्वत: ही स्पष्ट हो जाता है। यों तो यह संपूर्ण क्षेत्र प्राचीनकाल से ही सांस्कृतिक धरोहरों का केंद्र रहा है तथापि वर्तमान में भी विष्णुधान संपूर्ण राष्ट्र के समक्ष वैष्णव आस्था के एक सशक्त एवं समादृत तीर्थ स्थल के रूप में सर्वमान्यता प्राप्त कर रहा है। ग्राम सामस के विशाल जलाशय में यह प्राचीन मूर्ति मिट्टी के नीचे शताब्दियों से दबी थी। सिर्फ इसका आभामंडल ही दिखाई पड़ता था। इनकी पूजा ग्राम देवता के रूप में 'सिलबाबा' के नाम से होती थी। 5 जुलाई 1992 को आषाढ़, शुक्ल पंचमी रविवार को कुछ लोगों ने श्री विष्णु के इस विराट श्री विग्रह को मिट्टी से बाहर निकाल लिया। हमारी धर्मप्राण सामाजिक संरचना के कारण सहज रूप से दर्शनार्थियों की भीड़ उमड़ पड़ी। इस मौके पर गढ़ पर तीन महीने तक बहुत बड़ा मेला लगा। ग्रामीणों के सहयोग से इस मूर्ति को स्थापित कर दिया गया और विधिवत पूजा-अर्चना शुरू कर दी गई इसी के साथ मंदिर निर्माण की प्रक्रिया भी आरंभ हो गई। तत्कालीन प्रशासनिक अधिकारियों ने भी वहां पहुंच कर निरीक्षण किया।
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